Not known Facts About अहंकार की क्षणिक प्रकृति: विनम्रता का एक पाठ

आचार्य प्रशांत: ईगो (अहंकार) का सांकेतिक, शाब्दिक, आध्यात्मिक सब एक ही अर्थ होता है – ‘मैं’। ‘मैं’ की भावना को अहम्, ईगो कहते हैं।

महापुरुषों का जीवन हमें सदा अच्छे कर्म करने के लिए प्रेरित करता है।

की प्रकृति पर निर्भर करता है। देखा गया है कि अक्षम्य अपराधों के लिए लोग बड़ी

जल्दी माफी माँग लेते हैं, परंतु वैसे हालात में उन्हें माफ करना अत्यंत कठिन होता

प्र: हाँ, मैं पूरे तरीक़े से चाहता हूँ। जिस तरीक़े से भी होगा — आर्थिक, शारीरिक, मानसिक — जो भी होगा। मेरा एक उद्देश्य बना हुआ था। घर के भी लोगों को पता है कि दो-हज़ार-तीस का मैंने समय निकाला हुआ था कि मैं छोड़ दूँगा। पैदल यात्रा करने का सोचा था मैंने, लेकिन अब लग रहा है उसकी भी ज़रूरत नहीं, आपके साथ हो जाएँ, बहुत है।

प्र: आजकल तो अधिक परेशान रहने को सामाजिक प्रतिष्ठा और प्रेरणा का सूचक बताया जाता है।

बचेंगे नहीं अब।" अरे, ‘कै’ हट रहा था, ‘मैं’ थोड़े ही हट रहा था।

फ़िर तुम वापस लौट आओगे तो वो तुमको दो गाली और देगा। कहेगा, “बड़े होशियार बनते थे। गए थे जंगल, मुँह तुड़वा कर लौट आए।” क्योंकि तुम हो कौन? वो जो परेशान होने को इच्छुक है, तभी तो वो तुम्हारे ऊपर चढ़ा बैठता था। जो परेशान होने को तैयार नहीं, कौनसी परेशानी उससे चिपक सकती है?

प्र: पर अहम् से आगे जाने की बात भी तो स्वयं अहम् ही कर रहा है न!

बच्चों को आदत लग जाती है। बच्चे पैदा ही अय्याशी में हुए होते हैं। अब उनको आदत लग गई है। बच्चों को कैसे बताओगे कि इंटरनेशनल स्कूल से हटकर सीबीएसई स्कूल में जाना पड़ेगा?

तो किसको जाती है प्रार्थना? स्वयं को ही जाती है प्रार्थना। आपसे बाहर कोई और नहीं है। स्वयं को जाती है माने? फिर लाभ क्या हुआ? आपके भीतर ही शक्ति के गुप्त भंडार छुपे हुए हैं। आप उतने ही नहीं है जितना आपको पता है कि आप हैं। आप डर इसीलिए जाते हो क्योंकि आपका अहंकार कहता है कि तुम इत्तु से ही तो हो!

के दो या दो से अधिक रूपों को खोजिए। कम-से-कम चार शब्द website और उनके अन्य रूप लिखिए।

अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगना बिल्कुल आसान नहीं होता

पिल्लै की यही छवि उभरती है कि वह दुबले-पतले से दिखने वाले भारत के एक साधारण

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